किडनी इंफेक्शन (पायलोनफ्राइटिस) - Kidney Infection (Pyelonephritis)
1. कारण (Causes):-
किडनी इंफेक्शन (पायलोनफ्राइटिस) से संबंधित कुछ प्रमुख कारणों को विस्तार से समझते है-
1- बैक्टीरियल इंफेक्शन (मुख्य रूप से E. coli) - E. coli (Escherichia coli) एक प्रकार का बैक्टीरिया है जो आमतौर पर हमारे आंतों में पाया जाता है। यह बैक्टीरिया जब मूत्र मार्ग (Urinary Tract) के माध्यम से किडनी तक पहुंचता है, तो वह संक्रमण का कारण बनता है। E. coli लगभग 80-90% किडनी इंफेक्शन के मामलों का कारण होता है। यह बैक्टीरिया मुख्य रूप से मूत्राशय में संक्रमण (Cystitis) से किडनी तक फैलता है। यह संक्रमण किडनी में सूजन, दर्द, और अन्य लक्षण उत्पन्न करता है।
कारण -
अनुचित व्यक्तिगत स्वच्छता, बहुत अधिक समय तक पेशाब रोकना, खराब मूत्र प्रवाह, महिलाएँ अधिक प्रभावित होती हैं क्योंकि उनकी यूरेथ्रा (urethra) पुरुषों के मुकाबले छोटी होती है, जिससे बैक्टीरिया का किडनी तक पहुँचने का खतरा अधिक होता है।
2- मूत्र मार्ग संक्रमण (UTI) - मूत्र मार्ग संक्रमण (UTI) एक सामान्य संक्रमण है, जो मूत्रमार्ग (urethra), मूत्राशय (bladder), मूत्रनलिका (ureters) या किडनी (kidneys) में हो सकता है। जब यह संक्रमण किडनी तक पहुंचता है, तो उसे पायलोनफ्राइटिस कहा जाता है। UTI का मुख्य कारण बैक्टीरिया (मुख्य रूप से E. coli) होता है, जो मूत्रमार्ग से किडनी तक पहुंचता है।
कारण -
फ्रंट से बैक पोंछना - महिलाओं में मूत्र मार्ग संक्रमण का एक प्रमुख कारण फ्रंट से बैक पोंछने की गलत आदत है, जिससे बैक्टीरिया गुदा क्षेत्र से मूत्र मार्ग में पहुँच सकते हैं।
मूत्राशय का पूरा खाली न होना - अगर मूत्राशय पूरी तरह से नहीं खाली होता है, तो बैक्टीरिया मूत्र मार्ग में बढ़ सकते हैं और किडनी तक पहुँच सकते हैं।
बार-बार यौन संबंध बनाना - यौन संबंध के बाद मूत्र मार्ग में बैक्टीरिया का प्रवेश हो सकता है, जिससे UTI का खतरा बढ़ता है।
3- कैथेटर, किडनी स्टोन या संरचनात्मक समस्याएँ
कैथेटर (Urinary Catheterization) -कैथेटर वह चिकित्सा उपकरण है, जिसका उपयोग मूत्राशय से मूत्र निकालने के लिए किया जाता है। यह खासकर उन व्यक्तियों में प्रयोग किया जाता है जिनके पास मूत्राशय को खाली करने की क्षमता नहीं होती। हालांकि, कैथेटर का प्रयोग मूत्र मार्ग में बैक्टीरिया के प्रवेश का कारण बन सकता है, जिससे किडनी में संक्रमण हो सकता है। यह जोखिम बढ़ जाता है अगर कैथेटर लंबे समय तक शरीर में रहता है या अगर इसे सही से साफ नहीं किया जाता है।
किडनी स्टोन (Kidney Stones) - किडनी स्टोन कठोर जमा होते हैं जो किडनी में बनते हैं और मूत्र मार्ग में रुकावट पैदा कर सकते हैं। इन स्टोन्स से मूत्र प्रवाह रुक सकता है और बैक्टीरिया के लिए उपयुक्त वातावरण बन सकता है, जिससे किडनी में संक्रमण हो सकता है। किडनी स्टोन संक्रमण को और भी बढ़ा सकते हैं, क्योंकि यह मूत्र मार्ग के सामान्य प्रवाह को अवरुद्ध कर देता है और बैक्टीरिया को किडनी तक पहुँचने का मौका मिलता है।
संरचनात्मक समस्याएँ - कुछ लोग जन्म से ही मूत्र मार्ग में संरचनात्मक समस्याओं के साथ पैदा होते हैं, जैसे कि संकीर्ण मूत्र नलिका या मुड़ने वाली यूरीथ्रा। इस प्रकार की संरचनात्मक समस्याएँ मूत्र प्रवाह को अवरुद्ध कर सकती हैं और बैक्टीरिया को किडनी तक पहुँचने का अवसर देती हैं। उदाहरण के तौर पर, बच्चों में vesicoureteral reflux (VUR) जैसी स्थिति होती है, जिसमें मूत्र वापस किडनी की ओर बढ़ता है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
4- कमजोर इम्यून सिस्टम (जैसे, डायबिटीज)
डायबिटीज - डायबिटीज वाले व्यक्तियों में शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। उच्च रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) के कारण, मूत्र में अधिक ग्लूकोज हो सकता है, जो बैक्टीरिया के लिए उपयुक्त माध्यम है। डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति में रक्त प्रवाह कम हो सकता है और शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, जिससे बैक्टीरिया को प्रभावी तरीके से नष्ट करना मुश्किल हो जाता है।
कमजोर इम्यून सिस्टम वाले अन्य लोग - जो लोग HIV, कैंसर या इम्यूनोसुप्रेसिव दवाओं (जैसे कि स्टेरॉयड) का सेवन करते हैं, उनके इम्यून सिस्टम कमजोर होते हैं, जिससे किडनी संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। इम्यून सिस्टम की कमजोरी के कारण शरीर बैक्टीरिया और संक्रमण से सही तरीके से मुकाबला नहीं कर पाता है।
2. लक्षण (Symptoms):-
किडनी इंफेक्शन (पायलोनफ्राइटिस) के लक्षणों को विस्तार से समझते हैं-
1- बुखार और ठंड लगना
बुखार - किडनी इंफेक्शन का सबसे सामान्य लक्षण है बुखार। जब किडनी में संक्रमण होता है, तो शरीर की इम्यून सिस्टम बैक्टीरिया से लड़ने के लिए प्रतिक्रिया करता है, जिससे शरीर का तापमान बढ़ जाता है। यह बुखार हल्का या गंभीर हो सकता है, और यह 99°F से लेकर 103°F (37.2°C से 39.4°C) तक हो सकता है।
ठंड लगना - किडनी संक्रमण के कारण शरीर में तापमान में उतार-चढ़ाव होता है, जिससे ठंड लगने की भावना हो सकती है। ठंड लगना आमतौर पर बुखार के साथ होता है, और व्यक्ति को बहुत ठंडा महसूस होता है, साथ ही शरीर में कंपकंपी भी हो सकती है। यह एक संकेत है कि शरीर संक्रमण से लड़ने की कोशिश कर रहा है।
2- पीठ या साइड (फ्लैंक पेन) में दर्द
पीठ या साइड में दर्द - किडनी इंफेक्शन से होने वाला एक प्रमुख लक्षण फ्लैंक पेन (Flank Pain) है, जो पीठ के निचले हिस्से या साइड में होता है, खासकर किडनी के पास। यह दर्द गहरा और लगातार हो सकता है। यह किडनी में सूजन या संक्रमण के कारण होता है। यह दर्द किसी चोट या मांसपेशी खिंचने के कारण नहीं होता, बल्कि यह किडनी के आसपास की संरचनाओं में सूजन और संक्रमण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। कुछ मामलों में, दर्द बहुत तीव्र हो सकता है और व्यक्ति को चलने-फिरने में कठिनाई हो सकती है।
3- उल्टी और मिचली
उल्टी - किडनी इंफेक्शन के कारण होने वाली उल्टी आमतौर पर तब होती है जब शरीर संक्रमण के कारण नर्वस सिस्टम से प्रतिक्रिया करता है। यह एक सामान्य लक्षण है, और व्यक्ति को पेट में गड़बड़ी, जी मिचलाने की भावना, या अत्यधिक दर्द महसूस हो सकता है।
मिचली (Nausea) - किडनी इंफेक्शन में मिचली भी एक सामान्य लक्षण है। मिचली व्यक्ति को सामान्य गतिविधियों में बाधा डाल सकती है। यह लक्षण तब महसूस होता है जब शरीर में विषाक्त पदार्थों का संचय होने लगता है, क्योंकि किडनी पूरी तरह से कार्य नहीं कर पा रही होती है।
4- दर्दनाक या बार-बार पेशाब आना
दर्दनाक पेशाब - किडनी इंफेक्शन के दौरान, व्यक्ति को पेशाब करने में दर्द (Dysuria) महसूस हो सकता है। यह दर्द मूत्र मार्ग में संक्रमण के कारण होता है और मूत्राशय या मूत्रनलिका में सूजन या जलन हो सकती है। पेशाब करते समय जलन या दर्द महसूस हो सकता है, जिससे पेशाब करना कठिन और दर्दनाक हो जाता है।
बार-बार पेशाब आना - किडनी इंफेक्शन में अक्सर मूत्राशय पर दबाव बढ़ता है, जिससे व्यक्ति को बार-बार पेशाब करने की आवश्यकता महसूस होती है, हालांकि मूत्र की मात्रा कम हो सकती है। यह लक्षण मूत्र मार्ग संक्रमण (UTI) के कारण होता है और किडनी तक संक्रमण फैलने के कारण बढ़ सकता है।
5- पेशाब का गंदा या बदबूदार होना
पेशाब का गंदा होना - किडनी इंफेक्शन के दौरान, मूत्र में बैक्टीरिया और पेशाब के अवशेष मिलकर उसे गंदा बना सकते हैं। पेशाब का रंग बदल सकता है और यह मटमैला या धुंधला हो सकता है। पेशाब में किडनी संक्रमण के कारण घुली हुई विषाक्त सामग्री और बैक्टीरिया के कारण यह गंदा हो सकता है।
पेशाब का बदबूदार होना - किडनी इंफेक्शन में पेशाब की गंध में भी परिवर्तन आ सकता है। पेशाब से तीव्र और अप्रिय बदबू आ सकती है। यह बदबू संक्रमण के कारण उत्पन्न होने वाले बैक्टीरिया के कारण होती है। यदि पेशाब में गंध अत्यधिक तेज और अप्रिय हो, तो यह किडनी संक्रमण का संकेत हो सकता है।
3. निदान (Diagnosis):-
किडनी इंफेक्शन (पायलोनफ्राइटिस) का निदान (Diagnosis) सही और प्रभावी उपचार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। निदान के दौरान चिकित्सक निम्नलिखित प्रमुख परीक्षणों का उपयोग करते हैं -
1- यूरीन टेस्ट (बैक्टीरिया और खून की जांच के लिए)
यूरीन टेस्ट (Urinalysis) - किडनी इंफेक्शन का एक मुख्य निदान परीक्षण है, जो मूत्र में बैक्टीरिया, रक्त, प्रोटीन और अन्य अवांछित तत्वों की उपस्थिति की जांच करता है।
बैक्टीरिया का पता लगाना - मूत्र में बैक्टीरिया की उपस्थिति यह संकेत देती है कि मूत्रमार्ग या किडनी में संक्रमण हो सकता है। सामान्यतः E. coli जैसे बैक्टीरिया सबसे सामान्य कारण होते हैं।
रक्त का परीक्षण - अगर मूत्र में रक्त (Hematuria) पाया जाता है, तो यह किडनी में सूजन या संक्रमण का संकेत हो सकता है। रक्त का आना किडनी के ऊतकों के नुकसान को भी दर्शाता है।
प्रोटीन का परीक्षण - प्रोटीन की उपस्थिति किडनी के कार्य में गड़बड़ी का संकेत देती है। हालांकि, यह लक्षण किडनी के गंभीर नुकसान को भी दिखा सकता है।
कैसे किया जाता है - यह परीक्षण आमतौर पर एक साधारण यूरीन सैंपल से किया जाता है, जिसे लैब में जांच के लिए भेजा जाता है। इससे बैक्टीरिया और संक्रमण से संबंधित अन्य तत्वों का पता चलता है।
2- यूरीन कल्चर (बैक्टीरिया की पहचान के लिए) - यूरीन कल्चर एक और महत्वपूर्ण परीक्षण है जो मूत्र में बैक्टीरिया की पहचान करता है। इस टेस्ट में, मूत्र का एक नमूना लिया जाता है और उसे लैब में उगाने (cultivate) के लिए भेजा जाता है ताकि यह देखा जा सके कि कौन सा बैक्टीरिया मूत्र मार्ग या किडनी में संक्रमण का कारण बन रहा है।
बैक्टीरिया की पहचान - यह परीक्षण यह निर्धारित करने में मदद करता है कि संक्रमण का कारण कौन सा बैक्टीरिया है, जिससे डॉक्टर को उस बैक्टीरिया के खिलाफ उपयुक्त एंटीबायोटिक निर्धारित करने में मदद मिलती है।
संवेदनशीलता परीक्षण - इस टेस्ट के दौरान, बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं के विभिन्न प्रकारों के साथ परीक्षण किया जाता है, जिससे यह पता चलता है कि कौन सी दवाएं बैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी हैं।
क्यों जरूरी है - यह टेस्ट किडनी संक्रमण के सही इलाज के लिए जरूरी होता है, क्योंकि विभिन्न बैक्टीरिया अलग-अलग दवाओं पर प्रतिक्रिया करते हैं।
3- ब्लड टेस्ट (संक्रमण के स्तर की जांच के लिए) - ब्लड टेस्ट (Blood Tests) संक्रमण के कारण शरीर की प्रतिक्रिया को मापने में मदद करता है। यह विशेष रूप से हाई WBC (White Blood Cell count) और C-reactive protein (CRP) जैसे सूजन के संकेतकों का पता करने के लिए किया जाता है।
WBC काउंट - किडनी संक्रमण के दौरान शरीर की इम्यून सिस्टम बैक्टीरिया से लड़ने के लिए अधिक व्हाइट ब्लड सेल्स (WBCs) उत्पन्न करता है। अगर WBC काउंट बढ़ा हुआ होता है, तो यह एक संक्रमण का संकेत हो सकता है।
CRP और ESR - ये दोनों सूजन के संकेतक हैं। यदि CRP और ESR (Erythrocyte Sedimentation Rate) उच्च होते हैं, तो यह सूजन और संक्रमण के संकेत हो सकते हैं, जो किडनी में हो रहा है।
किडनी फंक्शन टेस्ट - ब्लड टेस्ट में किडनी के कार्य की भी जांच की जाती है, जैसे Creatinine और Blood Urea Nitrogen (BUN) के स्तर की जांच। इनकी अधिकता किडनी के सही ढंग से कार्य न करने का संकेत हो सकती है।
4- इमेजिंग (अल्ट्रासाउंड या CT स्कैन) - इमेजिंग परीक्षण किडनी इंफेक्शन का निदान और उसकी स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। इन परीक्षणों से किडनी में सूजन, संक्रमण, या किसी संरचनात्मक समस्या का पता चलता है।
अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) - अल्ट्रासाउंड एक गैर-इनवेसिव (non-invasive) इमेजिंग तकनीक है, जो शरीर के भीतर की संरचनाओं की तस्वीरें बनाती है। यह किडनी में किसी प्रकार की सूजन, स्टोन, या ऐब्सेस की उपस्थिति को दिखा सकता है। यह किडनी के आकार और संरचना की जांच करने के लिए उपयोग किया जाता है और यह यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि क्या कोई बड़ी समस्या (जैसे किडनी स्टोन या एब्सेस) है जो संक्रमण को बढ़ा सकती है।
CT स्कैन (CT Scan) - CT स्कैन एक और प्रभावी इमेजिंग तकनीक है, जो शरीर के अंदर की बहुत स्पष्ट और विस्तृत तस्वीरें बनाती है। यह टेस्ट किडनी संक्रमण की स्थिति का अधिक गहरा विश्लेषण करने में मदद करता है। यह परीक्षण विशेष रूप से किडनी में किसी स्टोन, ऐब्सेस, या अन्य जटिलताओं की उपस्थिति को बेहतर तरीके से पहचान सकता है, जो किडनी संक्रमण के कारण हो सकती हैं। CT स्कैन आमतौर पर तब किया जाता है जब अल्ट्रासाउंड से पर्याप्त जानकारी नहीं मिलती या संक्रमण के कारण गंभीर जटिलताओं का संदेह होता है।
4. इलाज (Treatment):-
किडनी इंफेक्शन (पायलोनफ्राइटिस) का इलाज संक्रमण के प्रकार, गंभीरता, और मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। किडनी इंफेक्शन का उपचार मुख्य रूप से एंटीबायोटिक्स, दर्द निवारक दवाओं, हाइड्रेशन, और गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती के माध्यम से किया जाता है। आइए इन सभी उपचार विधियों को विस्तार से समझते हैं-
1- एंटीबायोटिक्स (मौखिक या इंट्रावेनस) - एंटीबायोटिक्स किडनी इंफेक्शन के इलाज का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। किडनी संक्रमण आमतौर पर बैक्टीरिया के कारण होता है, और एंटीबायोटिक्स इन बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए प्रभावी रूप से काम करते हैं।
मौखिक एंटीबायोटिक्स - हल्के से मध्यम किडनी इंफेक्शन में, एंटीबायोटिक्स को मौखिक रूप (गोलियों या दवाओं के रूप में) लिया जाता है। यह संक्रमण के कारण बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करता है। कुछ सामान्य मौखिक एंटीबायोटिक्स हैं:
Ciprofloxacin (सिप्रोफ्लोक्सासिन)
Trimethoprim-sulfamethoxazole (ट्राईमेथोप्रिम-सल्फामेथोक्साज़ोल)
Amoxicillin (एमोक्षीसिलिन)
इंट्रावेनस (IV) एंटीबायोटिक्स - गंभीर किडनी इंफेक्शन या जब मरीज को मौखिक एंटीबायोटिक्स से राहत नहीं मिलती है, तो डॉक्टर इंट्रावेनस एंटीबायोटिक्स का प्रयोग कर सकते हैं। ये एंटीबायोटिक्स सीधे रक्त में डाले जाते हैं और तेजी से कार्य करते हैं, जिससे संक्रमण को जल्दी से नियंत्रित किया जा सकता है। कुछ सामान्य इंट्रावेनस एंटीबायोटिक्स हैं:
Ceftriaxone (सेफट्रायक्सोन)
Piperacillin-tazobactam (पाइपेरेसिलिन-टाजोबैक्टम)
एंटीबायोटिक कोर्स - किडनी संक्रमण के इलाज के लिए एंटीबायोटिक को पूरा कोर्स लेना बहुत महत्वपूर्ण होता है, भले ही लक्षण जल्दी ठीक हो जाएं। कोर्स को पूरा नहीं करने से संक्रमण फिर से हो सकता है और बैक्टीरिया एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधी बन सकते हैं।
2- दर्द निवारक (जैसे, ibuprofen) - किडनी इंफेक्शन के दौरान होने वाली दर्द और सूजन को नियंत्रित करने के लिए दर्द निवारक दवाओं का उपयोग किया जाता है। ये दवाएं संक्रमण के कारण उत्पन्न होने वाली जलन और दर्द को कम करती हैं। Ibuprofen (इबुप्रोफेन) जैसी Nonsteroidal Anti-Inflammatory Drugs (NSAIDs) का उपयोग किडनी संक्रमण के दौरान आमतौर पर किया जाता है। इबुप्रोफेन दर्द, सूजन और बुखार को कम करता है। हालांकि, NSAIDs का उपयोग कुछ मामलों में किडनी को नुकसान पहुँचा सकता है, विशेष रूप से जब यह लंबे समय तक या उच्च खुराक में लिया जाता है, इसलिए इसे डॉक्टर के निर्देशानुसार ही लेना चाहिए। इसके अलावा, Acetaminophen (Paracetamol) का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जो बुखार और दर्द को कम करने में मदद करता है, और यह किडनी पर NSAIDs की तरह बुरा प्रभाव नहीं डालता।
विशेष सावधानी - दर्द निवारक दवाओं का उपयोग केवल चिकित्सा पर्यवेक्षण में किया जाना चाहिए, क्योंकि किडनी के कार्य को प्रभावित करने वाली दवाएं कभी-कभी समस्या को और बढ़ा सकती हैं।
3- हाइड्रेशन (पानी पीना)
हाइड्रेशन यानी शरीर में तरल की उचित मात्रा बनाए रखना किडनी इंफेक्शन के इलाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। संक्रमण के दौरान पर्याप्त पानी पीने से बैक्टीरिया को मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकालने में मदद मिलती है।
वाटर (पानी) पीने से मूत्र प्रवाह बढ़ता है, जो किडनी के संक्रमण को ठीक करने में सहायक होता है। यह बैक्टीरिया के लिए एक निवारक उपाय बनता है और पेशाब के जरिए बैक्टीरिया को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है।
डॉक्टर आमतौर पर मरीजों को यह सलाह देते हैं कि वे अधिक पानी पिएं, ताकि मूत्र प्रवाह को बढ़ावा मिले और संक्रमण को जल्दी खत्म किया जा सके।
इलेक्ट्रोलाइट संतुलन - हाइड्रेशन का ध्यान रखते हुए, यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स का संतुलन बना रहे, खासकर अगर उल्टी या दस्त जैसी समस्याएं हो रही हों। इसके लिए ओआरएस (Oral Rehydration Solution) का भी सेवन किया जा सकता है।
4- गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती - अस्पताल में भर्ती तब किया जाता है जब किडनी इंफेक्शन गंभीर हो जाता है या मरीज को एंटीबायोटिक्स से सुधार नहीं होता है। गंभीर संक्रमण में, शरीर की इम्यून प्रतिक्रिया कमजोर हो सकती है, और मरीज को ठीक होने के लिए अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता हो सकती है।
IV एंटीबायोटिक्स - अस्पताल में भर्ती होने पर, मरीज को इंट्रावेनस (IV) एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं, ताकि संक्रमण को जल्दी से नियंत्रित किया जा सके। यह आमतौर पर उन लोगों के लिए होता है जिनमें उच्च बुखार, बहुत अधिक दर्द, या गंभीर लक्षण होते हैं।
निगरानी और सपोर्टिव देखभाल - अस्पताल में, मरीज की लगातार निगरानी की जाती है, और अगर कोई जटिलताएं उत्पन्न होती हैं, तो उन्हें तुरंत नियंत्रित किया जाता है।
ऑक्सीजन और अन्य सपोर्ट - कुछ गंभीर मामलों में, मरीज को शारीरिक सहायता जैसे कि ऑक्सीजन सपोर्ट, तरल पदार्थ, और अन्य उपचार की आवश्यकता हो सकती है।
किडनी डायलिसिस - बहुत दुर्लभ मामलों में, जब किडनी फेल हो जाती है या संक्रमण के कारण किडनी की कार्यक्षमता पूरी तरह से रुक जाती है, तो डायलिसिस की आवश्यकता हो सकती है।
5. जटिलताएँ (Complications):-
किडनी इंफेक्शन (पायलोनफ्राइटिस) यदि सही समय पर इलाज नहीं किया जाए, तो यह गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है। इन जटिलताओं में से कुछ प्रमुख हैं: सेप्सिस, किडनी में क्षति या ऐब्सेस, क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD), और किडनी फेलियर। आइए इन सभी जटिलताओं को विस्तार से समझते हैं:
1- सेप्सिस (संक्रमण का रक्त में फैलना) - सेप्सिस एक गंभीर और जीवन के लिए खतरनाक स्थिति है, जिसमें शरीर के विभिन्न हिस्सों में संक्रमण फैलने के कारण रक्त प्रवाह में बैक्टीरिया (या उनके द्वारा उत्पन्न विषाक्त पदार्थ) फैल जाते हैं। जब किडनी इंफेक्शन से उत्पन्न बैक्टीरिया रक्त में प्रवेश कर जाते हैं, तो शरीर की इम्यून सिस्टम अत्यधिक प्रतिक्रिया करती है। इससे संपूर्ण शरीर में सूजन और अनेक अंगों का काम करने में विफलता हो सकती है।
लक्षण - सेप्सिस के लक्षणों में तेज बुखार, ठंड लगना, सांस लेने में कठिनाई, तेज दिल की धड़कन, और मानसिक स्थिति में बदलाव (जैसे भ्रम) शामिल हो सकते हैं।
इलाज - सेप्सिस का इलाज तुरंत अस्पताल में किया जाता है, जहां एंटीबायोटिक्स और सपोर्टिव उपचार (जैसे, फ्लूइड रिवाइवल, ऑक्सीजन सपोर्ट) दिया जाता है। यदि सेप्सिस का समय पर इलाज नहीं किया गया, तो यह अंग विफलता या मृत्यु का कारण बन सकता है।
2- किडनी में क्षति या ऐब्सेस
किडनी में क्षति - यदि किडनी इंफेक्शन लंबे समय तक चलता है या सही तरीके से इलाज नहीं किया जाता है, तो यह किडनी के ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकता है। यह किडनी के कार्य को प्रभावित कर सकता है और किडनी की कार्यक्षमता में कमी का कारण बन सकता है।
ऐब्सेस - किडनी के भीतर पुंछे (पॉकेट्स) बन सकते हैं, जिन्हें ऐब्सेस कहा जाता है। यह एक संक्रामक द्रव से भरा हुआ क्षेत्र होता है, जो सूजन और गंभीर दर्द का कारण बन सकता है।
लक्षण - किडनी में ऐब्सेस या क्षति होने पर व्यक्ति को गंभीर पीठ दर्द, बुखार, उल्टी, और कभी-कभी रक्त का आना हो सकता है। यह स्थिति किडनी के कार्य में स्थायी नुकसान कर सकती है।
इलाज - ऐब्सेस का इलाज आमतौर पर एंटीबायोटिक्स से किया जाता है, लेकिन कुछ मामलों में, सर्जिकल ड्रेनेज (फाड़कर मवाद को बाहर निकालना) की आवश्यकता हो सकती है, यदि ऐब्सेस बड़ा हो या गंभीर हो।
3- क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) - क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) किडनी की एक दीर्घकालिक स्थिति है, जिसमें किडनी का कार्य धीरे-धीरे गिरता है। यदि किडनी इंफेक्शन को बार-बार या लंबा इलाज नहीं मिलता, तो यह क्रॉनिक किडनी डिजीज का कारण बन सकता है। CKD में किडनी की कार्यक्षमता समय के साथ घटती जाती है, और यह विभिन्न कारणों से हो सकता है जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, या पुरानी किडनी संक्रमण।
लक्षण - CKD के लक्षणों में थकान, सूजन, उच्च रक्तचाप, और पेशाब में बदलाव (कम या अधिक पेशाब आना) शामिल हो सकते हैं। यह धीरे-धीरे विकसित होता है और अंतिम स्टेज में किडनी फेलियर का कारण बन सकता है।
इलाज - CKD के उपचार में आमतौर पर मेडिकेशन, स्वस्थ जीवनशैली, और कभी-कभी डायलिसिस शामिल होता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य किडनी के कार्य को बनाए रखना और जटिलताओं को रोकना है।
4- किडनी फेलियर - किडनी फेलियर तब होता है जब किडनी पूरी तरह से कार्य करना बंद कर देती है। यह किडनी इंफेक्शन, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, या अन्य कारणों से हो सकता है।
किडनी फेलियर दो प्रकार के होते हैं-
अक्यूट किडनी फेलियर (Acute Kidney Failure) - यह अचानक होता है, और यह आमतौर पर किडनी में कोई गंभीर संक्रमण या अन्य रोगों के कारण होता है।
क्रॉनिक किडनी फेलियर (Chronic Kidney Failure) - यह धीरे-धीरे विकसित होता है, और यह आमतौर पर दीर्घकालिक किडनी समस्याओं के कारण होता है।
लक्षण - किडनी फेलियर के लक्षणों में कम या अत्यधिक पेशाब आना, पैरों में सूजन, सांस लेने में कठिनाई, थकान, और पेट में ऐंठन हो सकते हैं। इसके अलावा, रक्त में विषाक्त पदार्थों का उच्च स्तर भी हो सकता है।
इलाज - किडनी फेलियर का इलाज विभिन्न उपायों से किया जाता है, जिसमें डायलिसिस, किडनी ट्रांसप्लांट, और मेडिकल देखभाल शामिल होते हैं। डायलिसिस किडनी के कार्य को अस्थायी रूप से समर्थन देता है, जबकि किडनी ट्रांसप्लांट जीवनभर के लिए किडनी के कार्य को बहाल करता है।
6- रोकथाम (Prevention):-
किडनी इंफेक्शन (पायलोनफ्राइटिस) की रोकथाम के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपायों को अपनाकर आप संक्रमण से बच सकते हैं। इन उपायों में सही स्वच्छता, पानी पीना, नियमित रूप से पेशाब करना, और लंबी अवधि तक कैथेटर का उपयोग न करना शामिल हैं। आइए इन सभी रोकथाम उपायों को विस्तार से समझते हैं -
1- सही स्वच्छता (सामने से पीछे की ओर पोंछना) - स्वच्छता किडनी इंफेक्शन की रोकथाम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, विशेष रूप से महिलाओं के लिए। मूत्र मार्ग संक्रमण (UTI) किडनी संक्रमण का एक मुख्य कारण होता है, और यह तब हो सकता है जब बैक्टीरिया आंतरिक अंगों तक पहुंच जाते हैं।
महिलाओं को सामने से पीछे की ओर पोंछने की आदत डालनी चाहिए, यानी जब वे बाथरूम में जाएं तो पेशाब करने के बाद टॉयलेट पेपर से अपने प्राइवेट पार्ट्स को सामने से पीछे की ओर साफ करें। इससे बैक्टीरिया को गुदा क्षेत्र से मूत्र मार्ग में जाने से रोका जा सकता है।
पेशाब के बाद सफाई - हमेशा सुनिश्चित करें कि आप साफ और सूखे टॉयलेट पेपर का उपयोग करें, और इससे पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से धो लें। यह स्वच्छता किडनी संक्रमण से बचने में मदद करती है।
2- बहुत पानी पीना - हाइड्रेशन किडनी इंफेक्शन की रोकथाम के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पानी पीने से मूत्र मार्ग में बैक्टीरिया को बाहर निकालने में मदद मिलती है और पेशाब में उपस्थित विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जाता है। नियमित रूप से पानी पीने से मूत्र मार्ग का फ्लशिंग होता है, जिससे बैक्टीरिया के लिए संक्रमण फैलाने का मौका कम हो जाता है।
नियमित पानी पीना - विशेषज्ञ आमतौर पर सलाह देते हैं कि एक व्यक्ति को रोजाना कम से कम 8-10 गिलास पानी पीना चाहिए। यह पानी शरीर में हाइड्रेशन बनाए रखता है और किडनी को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
फल और पानी वाले खाद्य पदार्थ - अगर आप पानी का स्वाद नहीं पसंद करते, तो फलों और सब्जियों का सेवन भी हाइड्रेशन बनाए रखने का अच्छा तरीका है, जैसे तरबूज, खीरा, संतरा, आदि।
3- नियमित रूप से पेशाब करना
पेशाब न रोकना - जब भी आपको पेशाब करने का मन हो, तो इसे रोकने की बजाय समय पर पेशाब करें। पेशाब को बहुत देर तक रोके रखने से मूत्र मार्ग में बैक्टीरिया का निर्माण हो सकता है, जिससे किडनी संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
समय पर पेशाब जाना - यह आदत सुनिश्चित करती है कि मूत्र मार्ग में बैक्टीरिया को जमा होने का मौका न मिले। महिलाओं को विशेष रूप से इस बात का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि उनका मूत्र मार्ग पुरुषों की तुलना में छोटा होता है, जिससे बैक्टीरिया का संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है।
खुद को निर्जलित न होने दें - यदि आप पर्याप्त पानी पीते हैं और नियमित रूप से पेशाब करते हैं, तो यह आपके मूत्र मार्ग को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
4- लंबी अवधि तक कैथेटर का उपयोग न करना
कैथेटर का सीमित उपयोग - कैथेटर (जो मूत्र मार्ग से मूत्र निकालने के लिए इस्तेमाल किया जाता है) का लंबे समय तक उपयोग किडनी और मूत्र मार्ग के संक्रमण का खतरा बढ़ा सकता है। जब कैथेटर को लंबी अवधि तक छोड़ा जाता है, तो बैक्टीरिया मूत्र मार्ग में प्रवेश कर सकते हैं और संक्रमण उत्पन्न कर सकते हैं।
कैथेटर को सही समय पर हटाना - यदि किसी कारणवश कैथेटर का उपयोग किया गया है, तो इसे जितना जल्दी हो सके हटाना चाहिए। डॉक्टरों द्वारा कैथेटर के उपयोग की अवधि को कम करने की सलाह दी जाती है।
कैथेटर की स्वच्छता बनाए रखना - अगर कैथेटर का उपयोग अनिवार्य हो, तो यह सुनिश्चित करें कि इसे नियमित रूप से साफ किया जाए और संक्रमण से बचने के लिए सही तरीके से रखा जाए।
अतिरिक्त रोकथाम उपाय -
समान बैक्टीरिया संक्रमण से बचने के लिए परिवार के सभी सदस्यों की स्वच्छता बनाए रखें।
फेमिनिन उत्पादों (जैसे, डियोड्रेंट्स, स्प्रे) का इस्तेमाल करने से बचें, क्योंकि ये मूत्र मार्ग को परेशान कर सकते हैं और बैक्टीरिया को बढ़ावा दे सकते हैं।
टाइट और सिंथेटिक कपड़े पहनने से बचें क्योंकि ये त्वचा को पसीने से गीला रखते हैं और बैक्टीरिया को बढ़ावा दे सकते हैं। इसके बजाय, आरामदायक और सांस लेने योग्य कपड़े पहनें।
पेशाब करने के बाद वाइप्स का इस्तेमाल करें, जो बैक्टीरिया को समाप्त करने में मदद करते हैं और स्वच्छता बनाए रखते हैं।
हैडिंग इंफेक्शन के जोखिम को कम करने के लिए वैकल्पिक चिकित्सा, जैसे कि प्रोबायोटिक्स का सेवन, भी कुछ मामलों में मदद कर सकता है।
7- जोखिम के तत्व (Risk Factors):-
किडनी इंफेक्शन (पायलोनफ्राइटिस) का जोखिम विभिन्न तत्वों से प्रभावित होता है। कुछ लोग अन्य लोगों की तुलना में अधिक जोखिम में हो सकते हैं, और इन जोखिम तत्वों को समझना किडनी इंफेक्शन की रोकथाम और इलाज में मदद कर सकता है। आइए विस्तार से समझते हैं उन तत्वों के बारे में, जो किडनी इंफेक्शन के जोखिम को बढ़ाते हैं:
1- लिंग (महिलाएँ अधिक प्रभावित होती हैं)
महिलाएँ किडनी इंफेक्शन के लिए अधिक संवेदनशील होती हैं, और वे पुरुषों की तुलना में इस संक्रमण से अधिक प्रभावित होती हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं -
महिलाओं का मूत्रमार्ग (यूरीथ्रा) पुरुषों के मुकाबले छोटा होता है, जिससे बैक्टीरिया का मूत्राशय और किडनी तक पहुंचने का रास्ता कम होता है। यह बैक्टीरिया के संक्रमण का खतरा बढ़ा सकता है।
महिलाओं में हॉर्मोनल बदलाव (जैसे गर्भावस्था या मेनोपॉज के दौरान) मूत्र मार्ग की संरचना को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे बैक्टीरिया के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
महिलाओं में प्राकृतिक शारीरिक संरचना के कारण, जैसे योनिपथ के आसपास की त्वचा और मुंह से मूत्राशय तक पहुंचने का छोटा रास्ता, बैक्टीरिया का मूत्रमार्ग में प्रवेश करना आसान हो जाता है।
2- उम्र (बुजुर्ग और बच्चे)
बच्चे और बुजुर्ग लोग किडनी इंफेक्शन के लिए विशेष रूप से जोखिम में होते हैं।
बच्चे - बच्चों के मूत्रमार्ग और इम्यून सिस्टम की पूरी तरह से विकसित नहीं होती है, जिससे वे बैक्टीरिया संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इसके अलावा, अगर बच्चे पर्याप्त पानी नहीं पीते या पेशाब रोकते हैं, तो यह संक्रमण का कारण बन सकता है।
बुजुर्ग - बुजुर्गों में किडनी संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है क्योंकि उनके शरीर की इम्यून प्रणाली कमजोर होती है। साथ ही, बुजुर्गों में पेशाब में कठिनाई, जैसे पेशाब की आवृत्ति में कमी या मूत्रमार्ग के रोग, किडनी संक्रमण के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
पुरानी बीमारियाँ और कमजोर इम्यून सिस्टम बुजुर्गों को किडनी संक्रमण के लिए और भी अधिक जोखिम में डालते हैं।
3- गर्भावस्था
गर्भावस्था के दौरान किडनी इंफेक्शन का जोखिम अधिक होता है, और यह दोनों माँ और बच्चे के लिए गंभीर समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। गर्भावस्था के दौरान शारीरिक परिवर्तन होते हैं, जो मूत्र मार्ग को प्रभावित करते हैं-
गर्भाशय का आकार बढ़ने से मूत्रमार्ग पर दबाव पड़ता है, जिससे मूत्र का प्रवाह धीमा हो सकता है और बैक्टीरिया के लिए संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
गर्भावस्था के दौरान हॉर्मोनल बदलाव मूत्र मार्ग के आकार और कार्य को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे बैक्टीरिया का मूत्राशय और किडनी तक पहुंचने का मौका मिलता है।
पेशाब में अवरोध या यूरीन रिटेंशन (पेशाब को रोके रखना) भी किडनी इंफेक्शन का कारण बन सकता है।
गर्भवती महिलाओं में असामान्य पेशाब या मूत्र मार्ग के संक्रमण (UTI) से किडनी इंफेक्शन होने की संभावना अधिक होती है, और यह गर्भावस्था के दौरान जल्दी इलाज की आवश्यकता होती है।
4- डायबिटीज और कमजोर इम्यून सिस्टम
डायबिटीज (मधुमेह) - डायबिटीज से पीड़ित लोगों में किडनी इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है। उच्च रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) के स्तर के कारण मूत्र में अधिक शर्करा होती है, जो बैक्टीरिया को बढ़ने के लिए एक अच्छा माध्यम प्रदान करती है। इसके अलावा, डायबिटीज से इम्यून सिस्टम कमजोर हो सकता है, जिससे शरीर बैक्टीरिया के खिलाफ ठीक से लड़ नहीं पाता।
कमजोर इम्यून सिस्टम - जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है (जैसे, एचआईवी संक्रमित व्यक्ति, केमोथेरपी प्राप्त करने वाले रोगी, या ऐसे लोग जो लंबे समय से स्टेरॉयड या इम्यूनोसप्रेसिव दवाओं का उपयोग कर रहे हैं), उन्हें किडनी इंफेक्शन होने का खतरा अधिक होता है। इन स्थितियों में शरीर बैक्टीरिया से लड़ने के लिए पर्याप्त रूप से प्रतिक्रिया नहीं कर पाता है, और संक्रमण जल्दी फैल सकता है।
इम्यून सिस्टम कमजोर होने से संक्रमण का प्रकोप बढ़ सकता है, जिससे किडनी के संक्रमण का खतरा और भी बढ़ जाता है।
8- विशेष समूहों में किडनी संक्रमण (Kidney Infection in Special Populations):-
विशेष समूहों में किडनी संक्रमण का जोखिम अधिक होता है, और इन समूहों में संक्रमण का इलाज और प्रबंधन कुछ विशेष सावधानियों की आवश्यकता होती है। निम्नलिखित हैं वे प्रमुख समूह जो किडनी संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं:
1- गर्भवती महिलाएँ: जटिलताओं का उच्च जोखिम - गर्भवती महिलाओं को किडनी संक्रमण (पायलोनफ्राइटिस) का खतरा अधिक होता है, और यह स्थिति माँ और बच्चे दोनों के लिए गंभीर हो सकती है।
शारीरिक बदलाव - गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय बढ़ता है, जिससे मूत्रमार्ग पर दबाव पड़ता है, जिससे पेशाब का प्रवाह धीमा हो सकता है और बैक्टीरिया को मूत्राशय से किडनी तक पहुंचने का मौका मिलता है।
हॉर्मोनल बदलाव - गर्भावस्था के दौरान हॉर्मोनल परिवर्तन मूत्र मार्ग के कार्य को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
जटिलताएँ - गर्भवती महिलाओं में किडनी संक्रमण यदि समय पर इलाज न किया जाए, तो इससे प्रीटरम बर्थ (अवधि से पहले बच्चे का जन्म), लो बर्थ वेट (कम वजन का बच्चा), और कभी-कभी प्रेग्नेंसी में उच्च रक्तचाप जैसी जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
इलाज - गर्भवती महिलाओं के लिए किडनी संक्रमण का इलाज एंटीबायोटिक्स के द्वारा किया जाता है, लेकिन यह ध्यान में रखते हुए कि जो दवाइयाँ दी जाती हैं, वे गर्भवती महिला और बच्चे के लिए सुरक्षित हों।
2- बुजुर्ग: असामान्य लक्षण (जैसे, भ्रम) - बुजुर्ग व्यक्तियों में किडनी संक्रमण के लक्षण अक्सर अलग होते हैं, और इनमें संक्रमण के सामान्य लक्षण जैसे बुखार, दर्द, और पेशाब में परिवर्तन के बजाय, भ्रम, अवसाद या असामान्य व्यवहार देखे जा सकते हैं। बुजुर्गों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, और इस कारण संक्रमण की प्रतिक्रिया उतनी प्रभावी नहीं होती, जिससे लक्षण छुप सकते हैं या धीमी गति से विकसित हो सकते हैं।
न्यूरोलॉजिकल लक्षण - किडनी संक्रमण बुजुर्गों में कभी-कभी भ्रम, चक्कर आना, या मानसिक स्थिति में बदलाव का कारण बन सकता है। ये लक्षण किडनी संक्रमण के कारण हो सकते हैं, लेकिन अन्य किसी कारण से भी हो सकते हैं, इसलिए इन लक्षणों को पहचानना मुश्किल हो सकता है।
इलाज - बुजुर्गों में किडनी संक्रमण का निदान और उपचार जल्दी और सही तरीके से किया जाना चाहिए, क्योंकि संक्रमण अगर देर से पकड़ा जाए तो यह सेप्सिस जैसी गंभीर स्थिति का कारण बन सकता है।
3- डायबिटिक मरीज: संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील - डायबिटीज (मधुमेह) से पीड़ित व्यक्तियों में किडनी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि उच्च रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) के कारण मूत्र में अधिक शर्करा होती है, जो बैक्टीरिया के लिए आदर्श वातावरण प्रदान करती है।
कमजोर इम्यून सिस्टम - डायबिटीज से पीड़ित लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, जिससे उनका शरीर बैक्टीरिया से ठीक से नहीं लड़ पाता और संक्रमण अधिक गंभीर हो सकता है।
मूत्र मार्ग के संक्रमण (UTI) - डायबिटीज़ वाले मरीजों में मूत्र मार्ग संक्रमण के होने की संभावना अधिक होती है, जो किडनी तक फैल सकता है और किडनी संक्रमण का कारण बन सकता है।
इलाज - डायबिटीज़ के रोगियों को किडनी संक्रमण के लिए त्वरित और प्रभावी इलाज की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही, उन्हें अपनी रक्त शर्करा को नियंत्रित करने की दिशा में भी कदम उठाने चाहिए, ताकि संक्रमण से लड़ने की उनकी क्षमता बढ़ सके।
9- प्रोन्नति (प्रोस्पेक्ट) (Prognosis):-
किडनी इंफेक्शन के प्रोन्नति (प्रोस्पेक्ट) का मतलब है कि किडनी संक्रमण के इलाज के बाद की स्थिति या संक्रमण के बढ़ने के परिणाम। किडनी इंफेक्शन का सही समय पर इलाज करने से अधिकांश मामलों में पूरी तरह से ठीक होने की संभावना होती है, लेकिन अगर इसे नजरअंदाज किया जाता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
1- एंटीबायोटिक्स से सामान्य रूप से ठीक हो जाते हैं
इलाज का तरीका - किडनी इंफेक्शन, जिसे पायलोनफ्राइटिस भी कहा जाता है, आमतौर पर एंटीबायोटिक्स से ठीक हो जाता है। एंटीबायोटिक्स का सही उपयोग बैक्टीरिया को खत्म करने और संक्रमण को नियंत्रण में लाने में मदद करता है।
प्रारंभिक निदान और उपचार - यदि किडनी इंफेक्शन का जल्द पता लगाकर इलाज शुरू किया जाए, तो मरीज आमतौर पर मौखिक एंटीबायोटिक्स से ठीक हो जाते हैं। गंभीर मामलों में, जैसे बैक्टीरिया का प्रतिरोधी रूप होने पर या संक्रमण अत्यधिक फैलने पर, इंट्रावेनस (IV) एंटीबायोटिक्स की जरूरत पड़ सकती है।
नियमित निगरानी - मरीज को ठीक होने तक नियमित रूप से डॉक्टर के पास जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संक्रमण पूरी तरह से समाप्त हो गया है और पुनः संक्रमण का खतरा न हो।
ठीक होने की संभावना - अधिकांश मामलों में, किडनी इंफेक्शन का इलाज एंटीबायोटिक्स से किया जाता है और मरीज सामान्य स्थिति में वापस लौट आते हैं। ठीक होने में कुछ दिन से लेकर कुछ हफ्ते तक का समय लग सकता है, लेकिन अगर इलाज समय पर किया जाए, तो मरीज जल्दी ठीक हो जाते हैं।
2- बिना इलाज के संक्रमण किडनी को नुकसान पहुँचा सकता है
संक्रमण का फैलाव - अगर किडनी संक्रमण का समय पर इलाज नहीं किया जाता है, तो यह किडनी के ऊतकों को नुकसान पहुँचाने का कारण बन सकता है। संक्रमण न केवल मूत्र मार्ग में रह सकता है, बल्कि यह किडनी तक भी फैल सकता है और पूरे शरीर में सेप्सिस का कारण बन सकता है।
किडनी क्षति - बिना इलाज के किडनी इंफेक्शन से किडनी में दायित्वपूर्ण क्षति हो सकती है, जिससे किडनी के कार्यों में परेशानी हो सकती है। यह स्थिति किडनी फेलियर (किडनी का काम करना बंद करना) का कारण बन सकती है।
क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) - यदि किडनी इंफेक्शन बार-बार होता है और इसका इलाज ठीक से नहीं किया जाता है, तो इससे क्रॉनिक किडनी डिजीज हो सकता है, जिसमें किडनी का कार्य धीरे-धीरे कम होता जाता है।
सेप्सिस का खतरा - किडनी संक्रमण अगर समय पर इलाज नहीं पाया जाता, तो संक्रमण रक्त में फैल सकता है और सेप्सिस (संक्रमण का रक्त में फैलना) का कारण बन सकता है, जो एक जीवन-धारी स्थिति हो सकती है।
किडनी एब्सेस - अगर किडनी में संक्रमण गंभीर हो जाता है, तो यह एब्सेस (गांठ या फोड़ा) का रूप ले सकता है, जिससे किडनी को स्थायी क्षति हो सकती है और सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।
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