किडनी (Kidney)
किडनी शरीर में एक जोड़ी अंग होती है, जो पीठ के निचले हिस्से में, रिब की धारा के नीचे स्थित होती है। यह लाल रंग की होती है और प्रत्येक किडनी का आकार एक मुट्ठी के बराबर होता है। किडनी के कार्य में मुख्य रूप से रक्त से अपशिष्ट पदार्थों का फिल्टर करना और शरीर में पानी, खनिजों और एसिड-बेस संतुलन बनाए रखना शामिल है।
1- किडनी की रचना (Anatomy of Kidney):-
किडनी एक महत्वपूर्ण अंग है जो शरीर में रक्त को छानने का कार्य करती है। यह अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त पानी को बाहर निकालने के लिए जिम्मेदार होती है, और शरीर के विभिन्न तत्वों के संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है। किडनी की संरचना जटिल है और इसमें कई अंग और संरचनाएँ होती हैं। नीचे इन संरचनाओं के बारे में विस्तार से समझाया गया है।
नेफ्रॉन (Nephron)
नेफ्रॉन किडनी का कार्यात्मक इकाई है, जहां रक्त का फिल्टर होना और अपशिष्ट का निष्कासन होता है। प्रत्येक किडनी में लगभग एक मिलियन नेफ्रॉन होते हैं। एक नेफ्रॉन में विभिन्न संरचनाएँ होती हैं जो फिल्ट्रेशन, रिअब्सॉर्प्शन, और सिक्रेशन प्रक्रियाओं को संपन्न करती हैं।
ग्लोमेरुलस (Glomerulus) - यह रक्त का पहला फिल्ट्रेशन स्थल है, जहां रक्त से तरल पदार्थ और छोटे अणु फिल्टर होते हैं।
बोमन कैप्सूल (Bowman's Capsule) - यह ग्लोमेरुलस से प्राप्त फिल्टर्ड पदार्थ को संग्रहीत करने वाली संरचना है।
प्रोक्सिमल कंवल्यूटेड ट्यूब (Proximal Convoluted Tubule) - यहां आवश्यक पदार्थ जैसे पानी, सोडियम, ग्लूकोज आदि रक्त में वापस अवशोषित होते हैं।
लूप ऑफ हेनले (Loop of Henle) - यह संरचना पानी और खनिजों के पुनः अवशोषण में मदद करती है, जिससे रक्त में पानी और सोडियम का संतुलन बनाए रखा जाता है।
डिस्टल कंवल्यूटेड ट्यूब (Distal Convoluted Tubule) - यहां कुछ अन्य खनिजों का अवशोषण होता है और शरीर के लिए आवश्यक रासायनिक संतुलन बनाए रखा जाता है।
कलेक्टिंग डक्ट (Collecting Duct) - यह अंत में, विभिन्न नेफ्रॉन्स से एकत्रित हुए पदार्थों को एक साथ लाकर अंतिम रूप से मूत्र के रूप में उत्सर्जित होने के लिए एकत्र करता है।
कॉर्टेक्स (Cortex)
किडनी का बाहरी भाग जिसे "कॉर्टेक्स" कहा जाता है, वह मुख्य रूप से नेफ्रॉन के ग्लोमेरुलस और कलेक्टिंग डक्ट से बना होता है। यह क्षेत्र किडनी का सबसे बाहरी हिस्सा होता है और रक्त के फिल्ट्रेशन की शुरुआत यहीं से होती है।
मेडुला (Medulla)
किडनी का अंदरूनी भाग जिसे "मेडुला" कहा जाता है, वह कॉर्टेक्स के नीचे स्थित होता है। इसमें किडनी के प्यामिड होते हैं जो कलेक्टिंग डक्ट को लेकर किडनी के पेल्विस तक जाते हैं। यह क्षेत्र अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पैपिला (Papilla)
पैपिला किडनी के मेडुला के अंतर्गत स्थित एक पिरामिड जैसी संरचना है, जो कलेक्टिंग डक्ट से जुड़े होते हुए अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त पानी को किडनी के पेल्विस में भेजता है। यह किडनी के प्यामिड का शीर्ष होता है।
कैलिक्स (Calyx)
कैलिक्स किडनी के पेल्विस के पास स्थित नलिका होती है, जो पैपिला से जुड़े होते हुए मूत्र को एकत्र करता है और उसे पेल्विस में भेजता है। किडनी के कैलिक्स को दो प्रकारों में बांटा जाता है:
मेज़ो कैलिक्स (Major Calyx) - यह बड़े आकार की नलिका होती है जो छोटे कैलिक्स (माइक्रो कैलिक्स) से मूत्र को एकत्र करती है और उसे पेल्विस में भेजती है।
माइक्रो कैलिक्स (Minor Calyx) - यह छोटे आकार की नलिकाएं होती हैं जो पैपिला से मूत्र को एकत्र करती हैं और मेज़ो कैलिक्स को भेजती हैं।
पेल्विस (Pelvis)
किडनी का पेल्विस वह गुहा होती है, जहां कैलिक्स से मूत्र एकत्र होता है और फिर उसे यूरेटर के माध्यम से मूत्राशय में भेजा जाता है। यह किडनी के मध्य भाग में स्थित होता है और मूत्र के एकत्रित होने का स्थान होता है।
यूरेटर (Ureter)
यूरेटर वह ट्यूब है जो किडनी के पेल्विस से मूत्र को मूत्राशय तक ले जाती है। प्रत्येक किडनी का एक यूरेटर होता है। यह एक लंबी नलिका होती है जो मूत्र को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने का कार्य करती है। मूत्र का प्रवाह यूरेटर के माध्यम से गुरुत्वाकर्षण और गति की मदद से होता है।
ग्लोमेरुलस (Glomerulus)
ग्लोमेरुलस एक छोटे से रक्त वाहिकाओं के गुच्छे (क्लस्टर) के रूप में होता है, जो किडनी के नेफ्रॉन के बोमन कैप्सूल में स्थित होता है। यह रक्त से अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त पानी को फिल्टर करने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह फिल्ट्रेशन प्रक्रिया को प्रारंभ करता है।
बोमन कैप्सूल (Bowman's Capsule)
बोमन कैप्सूल किडनी के नेफ्रॉन का एक हिस्सा होता है, जो ग्लोमेरुलस को घेरता है। यह क्षेत्र रक्त से फिल्टर्ड पदार्थों को एकत्र करता है और उन्हें आगे की प्रक्रियाओं के लिए प्रोक्सिमल कंवल्यूटेड ट्यूब में भेजता है।
प्रोक्सिमल कंवल्यूटेड ट्यूब (Proximal Convoluted Tubule)
यह ट्यूब बोमन कैप्सूल के बाद आती है और किडनी के कॉर्टेक्स में स्थित होती है। यहां, शरीर के लिए आवश्यक पदार्थों जैसे ग्लूकोज, अमिनो एसिड और आयन को पुनः अवशोषित किया जाता है।
लूप ऑफ हेनले (Loop of Henle)
लूप ऑफ हेनले एक U-आकार की संरचना होती है, जो किडनी के कॉर्टेक्स से मेडुला तक फैली होती है। इसका मुख्य कार्य पानी और खनिजों के संतुलन को बनाए रखना है। यह संरचना मूत्र के सांद्रण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
डिस्टल कंवल्यूटेड ट्यूब (Distal Convoluted Tubule)
यह ट्यूब लूप ऑफ हेनले के बाद आती है और मुख्य रूप से खनिजों जैसे सोडियम, पोटेशियम, और कैल्शियम के अवशोषण और उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार होती है। यह ट्यूब किडनी के मेडुला से जुड़ी होती है।
कलेक्टिंग डक्ट (Collecting Duct)
कलेक्टिंग डक्ट वह संरचना है जो डिस्टल कंवल्यूटेड ट्यूब से मूत्र को एकत्र करता है और फिर इसे पेल्विस की ओर भेजता है। कलेक्टिंग डक्ट का कार्य मूत्र के अंतिम सांद्रण और पानी के अवशोषण में शामिल होता है।
2- किडनी का कार्य (Functions of Kidney):-
किडनी के कार्य शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगों और प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं, जो शरीर के सामान्य कार्यों को बनाए रखने के लिए आवश्यक होते हैं। किडनी का मुख्य कार्य रक्त को छानना, अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालना, और विभिन्न शारीरिक संतुलनों को बनाए रखना है। नीचे किडनी के प्रमुख कार्यों की विस्तार से व्याख्या की गई है:
फिल्ट्रेशन (Filtration)
किडनी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य रक्त से अपशिष्ट और अतिरिक्त पदार्थों को हटाना है। यह प्रक्रिया नेफ्रॉन में होती है, खासकर ग्लोमेरुलस (एक गुच्छे के रूप में रक्त वाहिकाएं) में।
ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन - रक्त का एक हिस्सा ग्लोमेरुलस में दबाव के कारण फिल्टर हो जाता है और बोमन कैप्सूल में एकत्र हो जाता है। इसमें पानी, यूरिया, खनिज, और अन्य अपशिष्ट पदार्थ होते हैं, जो आगे की प्रक्रिया में निष्कासित किए जाते हैं।
रिअब्सॉर्प्शन (Reabsorption)
रिअब्सॉर्प्शन वह प्रक्रिया है जिसके दौरान किडनी अपशिष्ट पदार्थों के अलावा, शरीर के लिए आवश्यक तत्वों को पुनः अवशोषित करती है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से प्रोक्सिमल कंवल्यूटेड ट्यूब (PCT), लूप ऑफ हेनले, और डिस्टल कंवल्यूटेड ट्यूब (DCT) में होती है। इसमें:
ग्लूकोज, अमिनो एसिड्स, और खनिज (जैसे सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम) को रक्त में वापस अवशोषित किया जाता है, ताकि शरीर उन्हें पुनः उपयोग कर सके। शरीर का पानी भी पुनः अवशोषित हो जाता है, जिससे मूत्र का वॉल्यूम नियंत्रित किया जाता है।
सिक्रेशन (Secretion)
सिक्रेशन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किडनी कुछ अतिरिक्त पदार्थों को मूत्र में उत्सर्जित करती है। यह प्रक्रिया डिस्टल कंवल्यूटेड ट्यूब और कलेक्टिंग डक्ट में होती है।
किडनी रक्त से हानिकारक तत्व जैसे हाइड्रोजन आयन (H⁺), पोटेशियम आयन (K⁺), और कुछ दवाओं को मूत्र में छोड़ती है। इस प्रक्रिया से शरीर में खनिजों और अम्लों का संतुलन बनाए रखा जाता है।
रक्तचाप का नियंत्रण (Blood Pressure Regulation)
किडनी रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए रेनिन-एंजियोटेंसिन प्रणाली का उपयोग करती है। जब रक्तचाप गिरता है, तो किडनी रेनिन नामक एंजाइम को स्रावित करती है, जो एंजियोटेंसिन नामक प्रोटीन को सक्रिय करता है। यह रक्त वाहिकाओं को संकुचित करता है और रक्तचाप को बढ़ाता है।
रेनिन अंगों और रक्त वाहिकाओं में पानी की पुनः अवशोषण को बढ़ाता है, जिससे शरीर में द्रव का संतुलन बनाए रखा जाता है।
पानी और खनिज संतुलन (Water and Mineral Balance)
किडनी का एक महत्वपूर्ण कार्य शरीर के पानी और खनिजों का संतुलन बनाए रखना है। किडनी द्वारा खनिजों जैसे सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, और मैग्नीशियम का संतुलन नियंत्रित किया जाता है, ताकि इनका स्तर रक्त में आदर्श रूप से बने रहे।
किडनी सोडियम और पानी को पुनः अवशोषित करती है, जिससे शरीर में द्रव का स्तर और रक्तचाप नियंत्रित रहता है। पोटेशियम और कैल्शियम का संतुलन किडनी के माध्यम से सख्ती से नियंत्रित होता है।
एसिड-बेस संतुलन (Acid-Base Balance)
किडनी रक्त के pH संतुलन को बनाए रखने में भी मदद करती है। शरीर में अधिक अम्लीय (एसिडिक) या क्षारीय (आल्कलाइन) स्थिति से बचने के लिए, किडनी हाइड्रोजन आयनों (H⁺) और बिकार्बोनेट आयनों (HCO₃⁻) का संतुलन नियंत्रित करती है।
हाइड्रोजन आयन (H⁺) को मूत्र में उत्सर्जित करके, किडनी रक्त को अधिक क्षारीय (alkaline) बनाए रखती है। इसके अलावा, बिकार्बोनेट आयनों (HCO₃⁻) को रक्त में वापस अवशोषित कर शरीर के pH को सामान्य बनाए रखा जाता है।
विषाक्त पदार्थों का उत्सर्जन (Excretion of Toxins)
किडनी शरीर से विषाक्त पदार्थों और अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है, जो शरीर के मेटाबोलिज्म द्वारा उत्पन्न होते हैं। इन विषाक्त पदार्थों में:
यूरिया (जो प्रोटीन के मेटाबोलिज्म से उत्पन्न होता है), क्रिएटिनिन (जो मांसपेशियों से उत्पन्न होता है), नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट (जो प्रोटीन के टूटने से उत्पन्न होते हैं) इन सभी को रक्त से फिल्टर कर मूत्र के माध्यम से बाहर निकाला जाता है।
एरीथ्रोपोइटिन का निर्माण (Erythropoietin Production)
किडनी एरीथ्रोपोइटिन नामक एक हार्मोन का उत्पादन करती है, जो लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) के उत्पादन को उत्तेजित करता है। जब शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम होता है, तो किडनी अधिक एरीथ्रोपोइटिन स्रावित करती है, जो अस्थि मज्जा (Bone Marrow) को लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करने के लिए प्रेरित करता है।
विटामिन D का सक्रियकरण (Activation of Vitamin D)
किडनी शरीर में विटामिन D को सक्रिय रूप में बदलने में मदद करती है। यह प्रक्रिया 25-हाइड्रॉक्सीविटामिन D को 1,25-डिहाइड्रॉक्सीविटामिन D में बदलने के द्वारा होती है। यह सक्रिय विटामिन D कैल्शियम और फास्फोरस के अवशोषण को बढ़ाता है, जो हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
3- किडनी की संरचनात्मक और कार्यात्मक विशेषताएँ (Structural and Functional Features of the Kidney):-
किडनी की संरचना और कार्य उसके विभिन्न अंगों, प्रणालियों, और उनके कार्यों के संयोजन से जुड़ी होती है। यह शारीरिक क्रियाओं के नियंत्रण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जैसे कि रक्त के अपशिष्ट पदार्थों का उन्मूलन, रक्त की रासायनिक संतुलन को बनाए रखना, और हार्मोनल नियंत्रण।
अल्डोस्टेरोन (Aldosterone)
अल्डोस्टेरोन एक हार्मोन है जो एड्रेनल ग्रंथी (Adrenal Gland) से स्रावित होता है। यह हार्मोन किडनी के डिस्टल कंवल्यूटेड ट्यूब (DCT) और कलेक्टिंग डक्ट (Collecting Duct) में सोडियम आयनों (Na⁺) का पुनः अवशोषण बढ़ाता है। इसके कारण:
सोडियम और पानी का पुनः अवशोषण होता है, जो रक्त के वॉल्यूम और रक्तचाप को बढ़ाने में मदद करता है। किडनी से पोटेशियम (K⁺) का उत्सर्जन भी बढ़ता है, जो शरीर के खनिज संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।
एंटी-डाययूरेटिक हार्मोन (ADH - Antidiuretic Hormone)
एंटी-डाययूरेटिक हार्मोन, जिसे वसोप्रेसिन भी कहा जाता है, पिट्यूटरी ग्रंथी से स्रावित होता है। इसका मुख्य कार्य किडनी में कलेक्टिंग डक्ट (Collecting Duct) में पानी के पुनः अवशोषण को बढ़ाना है।
ADH रक्त में पानी के स्तर को बढ़ाता है, जिससे मूत्र का वॉल्यूम कम होता है और शरीर में पानी का संतुलन बनाए रहता है। जब ADH का स्तर अधिक होता है, तो शरीर अधिक पानी को पुनः अवशोषित करता है, जिससे मूत्र गाढ़ा और कम मात्रा में बनता है।
ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट (GFR - Glomerular Filtration Rate)
ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट (GFR) किडनी के कार्यात्मक स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण माप है, जो यह दर्शाता है कि एक मिनट में किडनी के ग्लोमेरुलस द्वारा कितनी मात्रा में रक्त को फिल्टर किया जाता है। सामान्य GFR दर:
90-120 mL/min/1.73m² (स्वस्थ व्यक्तियों के लिए) होती है। यह माप किडनी की कार्यक्षमता का संकेत देता है और यदि GFR कम होता है, तो यह किडनी की कार्यक्षमता में कमी का संकेत हो सकता है, जैसे किडनी की बीमारी।
यूरेमिया (Uremia)
यूरेमिया एक स्थिति है जिसमें शरीर में यूरिया और अन्य नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट पदार्थों का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है। यह स्थिति आमतौर पर किडनी की कार्यक्षमता में गंभीर हानि (किडनी फेल्योर) के कारण होती है।
- यूरेमिया के लक्षणों में थकान, मिचली, उल्टी, रक्तचाप में वृद्धि, और मानसिक भ्रम शामिल हो सकते हैं।
- यह गंभीर किडनी विफलता का संकेत होता है, जो उपचार की आवश्यकता को दर्शाता है।
क्रिएटिनिन क्लीयरेंस (Creatinine Clearance)
क्रिएटिनिन क्लीयरेंस किडनी के कार्य का एक अन्य महत्वपूर्ण माप है, जो यह बताता है कि किडनी एक मिनट में क्रिएटिनिन नामक अपशिष्ट पदार्थ को कितनी प्रभावी रूप से बाहर निकालती है।
यह क्रिएटिनिन (जो मांसपेशियों के मेटाबोलिज़्म का उत्पाद है) का रक्त से मूत्र में उत्सर्जन दर मापता है। सामान्य क्रिएटिनिन क्लीयरेंस की दर लगभग 90-140 mL/min होती है, लेकिन यह उम्र, लिंग, और मांसपेशियों के द्रव्यमान के अनुसार भिन्न हो सकती है। जब किडनी की कार्यक्षमता में कमी आती है, तो क्रिएटिनिन क्लीयरेंस घटता है, जो किडनी की खराबी को इंगीत करता है।
फिल्टरेशन (Filtration)
फिल्टरेशन वह प्रक्रिया है जिसमें किडनी रक्त से अपशिष्ट पदार्थों को और अतिरिक्त तरल पदार्थों को अलग करती है। यह प्रक्रिया ग्लोमेरुलस (glomerulus) में होती है।
रक्त को ग्लोमेरुलस में दबाव द्वारा फिल्टर किया जाता है, जिससे पानी, यूरिया, खनिज (जैसे सोडियम, पोटेशियम), और अन्य अपशिष्ट पदार्थ बोमन कैप्सूल में एकत्र होते हैं। यह पहली प्रक्रिया है, जो मूत्र के निर्माण की दिशा में होती है। फिल्टर किए गए पदार्थों में कोई भी उपयोगी तत्व किडनी द्वारा फिर से अवशोषित किए जाते हैं।
रिअब्सॉर्प्शन (Reabsorption)
रिअब्सॉर्प्शन वह प्रक्रिया है, जिसके दौरान किडनी द्वारा फिल्टर किए गए उपयोगी पदार्थों को वापस रक्त में अवशोषित किया जाता है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से प्रोक्सिमल कंवल्यूटेड ट्यूब (PCT), लूप ऑफ हेनले, और डिस्टल कंवल्यूटेड ट्यूब (DCT) में होती है।
इसमें ग्लूकोज, अमिनो एसिड, खनिज (जैसे सोडियम, कैल्शियम, पोटेशियम) और पानी का पुनः अवशोषण होता है। यह प्रक्रिया किडनी द्वारा शरीर के लिए आवश्यक तत्वों को बचाने और मूत्र का वॉल्यूम और रासायनिक संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
सिक्रेशन (Secretion)
सिक्रेशन वह प्रक्रिया है, जिसमें किडनी कुछ अतिरिक्त और हानिकारक पदार्थों को रक्त से मूत्र में भेजती है। यह प्रक्रिया डिस्टल कंवल्यूटेड ट्यूब (DCT) और कलेक्टिंग डक्ट (Collecting Duct) में होती है।
इसमें हाइड्रोजन आयन (H⁺), पोटेशियम आयन (K⁺), और अमोनिया जैसे पदार्थ रक्त से मूत्र में उत्सर्जित होते हैं, ताकि रक्त का pH संतुलन और खनिज संतुलन बनाए रखा जा सके। यह प्रक्रिया शरीर के विषाक्त पदार्थों और खनिजों का नियंत्रण करने के लिए महत्वपूर्ण है।
किडनी की रचना और कार्य का निष्कर्ष (Conclusion of Anatomy and Functions of the Kidney):-
किडनी शरीर का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है, जो रक्त को शुद्ध करने, मूत्र बनाने और शरीर में पानी, खनिजों, और अन्य पदार्थों के संतुलन को बनाए रखने का कार्य करती है। किडनी की रचना में विभिन्न संरचनाएँ जैसे नेफ्रॉन, ग्लोमेरुलस, बोमन कैप्सूल, प्रोक्सिमल कंवल्यूटेड ट्यूब, लूप ऑफ हेनले, डिस्टल कंवल्यूटेड ट्यूब, और कलेक्टिंग डक्ट शामिल हैं, जो मिलकर रक्त को फिल्टर करने, अपशिष्ट पदार्थों को निकालने, और जरूरी पदार्थों को पुनः अवशोषित करने की प्रक्रिया को अंजाम देती हैं।
किडनी के कार्यों में पानी का संतुलन बनाए रखना, खनिजों और प्रोटीन के स्तर को नियंत्रित करना, रक्तचाप को नियंत्रित करना, एसिड-बेस संतुलन बनाए रखना, विषाक्त पदार्थों का उत्सर्जन, एरीथ्रोपोइटिन का निर्माण, और विटामिन D का सक्रियकरण शामिल हैं। इसके अलावा, किडनी अपशिष्ट पदार्थों को मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकालती है।
किडनी की संरचनात्मक और कार्यात्मक विशेषताएँ जैसे अल्डोस्टेरोन, एंटी-डाययूरेटिक हार्मोन (ADH), ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट (GFR), और क्रिएटिनिन क्लीयरेंस किडनी के कार्यों की दक्षता को मापने और समझने में सहायक होती हैं।
कुल मिलाकर, किडनी का कार्य शरीर के अंदरूनी वातावरण को संतुलित और स्वस्थ बनाए रखना है, जो जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
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